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शनिवार, 4 अगस्त 2012

जिंदगी


जिंदगी का सफर पूरा करने में तलवार की धार पर चल रहा हुं ।
हाल दिलका सुनाने के वास्ते में दीवार की धार पर चल रहा हुं ।।

हाय उनकी हस्त रेखा में मेरा ही भाग्य क्युं केद है सोचता हुं ।
जब कभी जाना तो बीच सहरे में मझधार की धार पर चल रहा हुं ।।

राह कांटो भरी और खूं में डुबे पांव, आंखोमे घेरी उदासी ।
गुमसुदा यू तडफडाते लोगो की तकरार की धार पर चल रहा हुं ।।

ताजगी, खुश्बु, चांदनी चाहो तो प्रकृति के इस रंगो में डूबो ।
सार संसार का समजाने युग से संसार की धार पर चल रहा हुं ।।

रोते है पैरोंके छाले किसमत पर, सावन के घनधोर बादल हो जैसे ।
आज कल उनसे इकरार करवाने इनकार की धार पर चल रहा हुं ।।

भ्रष्ट सरकार के विरुध्ध लोगोमें जो असंतोष है उस पर बोला ।
मुँह से चार अलफास क्या निकले अखबार की धार पर चल रहा हुं ।।

सर्दीकी कांपती रातोमें आँखोके जालोसे छन कर आता है प्रकाश ।
बंध आंखो के भीतर उभरते हुए आकार की धार पर चल रहा हुं ।।

३-८-२०१२           

शुक्रवार, 29 जून 2012

भारत



मेरे भारत की दशा देखो ।
पेट भूखा, नंगा तन देखो ॥

चोरी, भ्रष्टाचार में डूबे ।
है विदेशो में तुम धन देखो ॥

हर कही उजडी है आजादी ।
चोतरफ से उखडा मन देखो ॥

भेडिये बसते है इंसा में ।
लगता है अब देश वन देखो ॥

पैसा ही पहेचान है यारो ।
प्यार से बढकर धन देखो ॥
“सखी”       
दर्शिता बाबुभाइ शाह 

२२-६-२०१२                    
        

रविवार, 18 मार्च 2012

मौसम

आज मौसम एक बडा सैलाब लेके आया है ।

हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा देखो छाया है ॥

जीस्त पे भारी पडा हे एक ही पल का ये कहर ।

साथ अपने आंधी में दुनिया बहा के लाया है ॥

पल दो पल में ओझल हुई शहरो की रोनक कहां ।

सोचते हे हम क्या खोया हे हमने , क्या पाया है ॥

२७-२-२०१२

फूल

पत्थरो में तरासा है प्यार को ।

फूल मुरजा जाते है पल दो पल में ॥

दुनिया को दी है निशानी प्यार की ।

खुश्बु लूटा जाते है पल दो पल में ॥

लोग सदियों से यहां आते है ओर ।

चैनो-सुकु पाते है पल दो पल में ॥

३-३-२०१२

छांव

छांव में धूप को तरसुं ।

बूढा हुं रुप को तरसुं ॥

है मन पर बोझ बड़ा भारी

शिखरों में कूप को तरसुं ॥

कैसा नादां हुं दुनिया में ।

फ़ज़ल के सूप को तरसुं ॥

कृपा


१८-२-२०१२

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

मखमली आवाज

मखमली आवाज गुम क्या हुई ?

गज़ल अनाथ हो गई ॥

दर्द से दामन भर गया ।

दिल का चैन-ओ-सुकु ले गई ॥

होश ही उड गए सुना जग ।

उम्रभर का गम दे गई ॥

चल दिये तो जाना खोया क्या ?

पाने की चाहत अधूरी रह गई ॥

चाहो तो दोलत शौहरत ले लो ।

वो रुह-ए-पाक आवाज लोटा दो ॥

कागज़ की कश्ती बारीश का पानी ।

चंद कहानीयाँ ही रह गई ॥

शाम से आँख मे नमी सी है ।

आपकी कमी हंमेशा रहेगी ॥

फरियाद दिल मे रह जाएगी ।

आँखो से क्या बात हो पाएगी ॥

11/10/11 4.15 p.m.

रविवार, 22 अगस्त 2010

ये हे मोदी का गुजरात ।

ये हे मोदी का गुजरात ।
ये हे स्वर्णिम गुजरात ॥
ये हे मोदी का गुजरात ।
ये हे स्वर्णिम गुजरात ॥

यहाँ दूध की नदीयाँ बहती ।
खुशी की हरीयाली रहती ।
प्यार की लौ सदा ही जलती ।
ये हे मोदी का गुजरात ।
ये हे स्वर्णिम गुजरात ॥

रीवर फ्रंट में सेर करो तुम ।
काकरीया में लहेर करो तुम ।
बी.आर.टी.एस में शहर घूमो तुम ।
ये हे मोदी का गुजरात ।
ये हे स्वर्णिम गुजरात ॥

यहाँ की बात नीराली ।
यहाँ की रात झगमगाती ।
यहाँ की जात गुजराती ।
ये हे मोदी का गुजरात ।
ये हे स्वर्णिम गुजरात ॥